कुंभ से खुलता है स्वर्ग का द्वार, जानिए कैसे शुरू हुई कुंभ की कहानी
Ardh Kumbh 2019 |
5 जनवरी 2019 से अर्धकुंभ का आगाज होने वाला है। इसका आयोजन प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) में हो रहा है। देश विदेश से करोड़ों श्रद्धालु कुंभ में हिस्सा लेने के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे। कुंभ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। कुंभ हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक चार स्थानों पर लगता है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर तीसरे साल कुंभ लगता है, जबकि 12वें साल में महाकुंभ अपने पहले स्थान पर लगता है। वहीं प्रयाग में 6 साल के अंतराल पर अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ का ज्योतिष महत्व
कुंभ को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की कहानियां है। लेकिन इसका महत्व धार्मिक और ज्योतिषीय दोनों है। खगोल गणना के अनुसार कुंभ का आयोजन मकर संक्रांति के दिन शुरू होता है, जब सूर्य और चंद्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति मेष राशि में प्रवेश करते हैं। कुंभ को लेकर कई प्रकार की मान्यताएं है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्वर्ग के दरवाजे खुलते हैं। कुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने वाली आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ती आसानी से हो जाती है।
कहानी कुंभ की
कुंभ की शुरुआत को लेकर भी कई कहानियां हैं। माना जाता है कि महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब देवराज इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण शुरू कर दिया और उन्हें परास्त कर दिया। इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए जिन्होंने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन की सलाह दी। समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला तो इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया।
वहीं गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत वापस पाने के लिए जयंत का पीछा किया। इस दौरान पृथ्वी पर प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक की धरती पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरी थीं वहां-वहां कुंभ पर्व का आयोजन होता है।
कुंभ की शुरुआत
हालांकि दस्तावेज बताते हैं कि कुंभ का आयोजन 525 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। माना जाता है कि 617-647 ईसवी में राजा हर्षवर्धन ने प्रयागराज में कुंभ में हिस्सा लिया था और अपना सब कुछ दान कर दिया करते थे। इससे पहले साल 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। अगला महाकुंभ साल 2025 में लगेगा। जनवरी 2019 में प्रयागराज में अर्धकुंभ लग रहा है।
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