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सोहराबुद्दीन केस : कोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपियों को किया बरी




अदालत ने 13 साल बाद फैसला दिया

सोहराबुद्दीन शेख-तुलसीराम प्रजापति कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में मुंबई में स्थित सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 13 साल बाद फैसला दिया है। अपने फैसले में अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया है। फैसले में अदालत ने कहा कि पेश किए गए सभी गवाह और सबूत षड्यंत्र और हत्या को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने परिस्थितिजन्य सबूतों का  नाकाफी पाया। 

अदालत ने कहा कि तुलसीराम प्रजापति की एक षड्यंत्र के तहत हत्या करने का आरोप सच नहीं है। सरकारी मशीनरी और अभियोजन पक्ष ने बहुत सारे प्रयास किए। 210 गवाह पेश किए गए लेकिन संतोषजनक सबूत नहीं आए और गवाह पूर्व में दिए अपने बयानों से पलट गए। यदि गवाह नहीं बोलते हैं तो इसमें अभियोजक की कोई गलती नहीं है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम भी शामिल था


साल 2005 के इस मामले में 22 लोग मुकदमे का सामना कर रहे थे जिनमें ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं। इस मामले पर विशेष निगाह रही है क्योंकि आरोपियों में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का नाम भी शामिल था। हालांकि, उन्हें 2014 में आरोप मुक्त कर दिया गया था। शाह इन घटनाओं के समय गुजरात के गृह मंत्री थे। 


मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के करीब 92 गवाह मुकर गए। इस महीने की शुरूआत में आखिरी दलीलें पूरी किए जाने के बाद सीबीआई मामलों के विशेष न्यायाधीश एस जे शर्मा ने कहा था कि वह 21 दिसंबर को फैसला सुनाएंगे। ज्यादातर आरोपी गुजरात और राजस्थान के कनिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारी हैं। 

38 लोगों में 16 को सबूत के अभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था अदालत ने


अदालत ने सीबीआई के आरोपपत्र में नामजद 38 लोगों में 16 को सबूत के अभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था। इनमें अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख पी सी पांडे और गुजरात पुलिस के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी डीजी वंजारा शामिल हैं।
क्या है पूरा मामला 


सीबीआई के मुताबिक आतंकवादियों से संबंध रखने वाला कथित गैंगेस्टर शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी प्रजापति को गुजरात पुलिस ने एक बस से उस वक्त अगवा कर लिया था, जब वे लोग 22 और 23 नवंबर 2005 की दरम्यिानी रात हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे। सीबीआई के मुताबिक शेख की 26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद के पास कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई। उसकी पत्नी को तीन दिन बाद मार डाला गया और उसके शव को ठिकाने लगा दिया गया।

साल भर बाद 27 दिसंबर 2006 को प्रजापति की गुजरात और राजस्थान पुलिस ने गुजरात - राजस्थान सीमा के पास चापरी में कथित फर्जी मुठभेड़ में गोली मार कर हत्या कर दी। अभियोजन ने इस मामले में 210 गवाहों से पूछताछ की जिनमें से 92 मुकर गए। 

सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी का नवंबर 2005 में एनकाउंटर हुआ था


इस बीच, बुधवार को अभियोजन के दो गवाहों ने अदालत से दरख्वास्त की कि उनसे फिर से पूछताछ की जाए। इनमें से एक का नाम आजम खान है और वह शेख का सहयोगी था। उसने अपनी याचिका में दावा किया है कि शेख पर कथित तौर पर गोली चलाने वाले आरोपी एवं पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर अब्दुल रहमान ने उसे धमकी दी थी कि यदि उसने मुंह खोला तो उसे झूठे मामले में फंसा दिया जाएगा। एक अन्य गवाह एक पेट्रोल पंप का मालिक महेंद्र जाला है।
बीते कई सालों से चर्चाओं में रहे सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में एक और गवाह अपने बयान से पलट गया है। हैरत की बात ये है कि इस केस में अभी तक कुल 50 गवाह अपने बयान से पलट चुके हैं। ध्यान रहे कि सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी का नवंबर 2005 में एनकाउंटर हुआ था। इस मामले की जांच और सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात में इस केस की जांच को प्रभावित किया जा रहा था और केस को 2012 में मुंबई ट्रांसफर कर कहा था कि इस मामले की शुरू से अंत तक सुनवाई एक ही जज करेगा। लेकिन 2014 में ही जज जेटी उत्पत का ट्रांसफर कर दिया गया।
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सोहराबुद्दीन केस के जस्टिस लोया

इसके बाद केस की सुनवाई के लिए जज बृजगोपाल लोया को नियुक्त किया गया। उनकी नियुक्ति के छह महीने बाद लोया की नागपुर में एक कार्यक्रम में मौत हो गई थी और इसको लेकर काफी विवाद हुआ था। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में मीडिया रिपोर्टिंग पर लगे बैन को हटा दिया था। मीडिया की रिपोर्टिंग पर बैन निचली अदालत ने 29 नवंबर के अपने आदेश में लगाया था। कुछ समय पहले एक मैग्जीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि जस्टिस लोया की मौत साधारण नहीं थी बल्कि संदिग्ध थी।




जिसके बाद से ही यह मामला दोबारा चर्चा में आया और इसको लेकर खूब राजनीतिक घमासान देखने को मिला।



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